रामराज्य एवं उसकी संकल्पना

भारतीय संस्कृति में श्रीराम को मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में पूजा जाता है। श्रीराम ने मानव की सभी मर्यादाओं का पालन किया इसलिए वे मार्यादापुरुषोत्तम माने जाते हैं। सद्गुरु श्रीअनिरुद्धजी ने श्रीमदपुरुषार्थ ग्रंथराज के प्रथम खंड ’सत्यप्रवेश’ में मर्यादा पुरुषोत्तम का विस्तृत विवेचन किया है। मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम की ’अयोध्या’ में राजा और प्रजा दोनों का आचरण मर्यादा पुरुषार्थ के अनुसार ही था, इसलिए रामराज्य में अयोध्या की जनता खुश, सुखी एवं संतुष्ट थी। सद्गुरु श्री अनिरुद्धजी ने ६ मई २०१० के दिन रामराज्य की संकल्पना सबके समक्ष स्पष्ट की।

’अयोध्या के नागरिक जैसे थे वैसे बनना, वैसी मर्यादा व्यवस्था बनना, हरएक व्यक्ति मर्यादा पुरुषार्थशील बनना, समष्टि की ऐसी प्रतिक्रिया प्राप्त होना ही रामराज्य है। सन २०२५ में रामराज्य निर्माण करना, यह मेरा सपना है, ध्येय है और ब्रीद भी है।    रामराज्य के लिए हमें उचित श्रम करने के लिए वचनबद्ध होने की आवश्यकता है। यह सारी कोशिशें व्यक्तिगत एवं सामाजिक स्तर पर होनी चाहिएं’, यह सद्गुरु श्री अनिरुद्धजी के विवेचन का आशय था और उन्होंने उनसे प्रेम करनेवाले सभी से रामराज्य संकल्पना को सत्य में उतारने हेतु पुरुषार्थ करने का आवाहन किया। 

सद्‍गुरु श्री अनिरुद्धजी ने स्पष्ट किया कि, सन २०२५ में रामराज्य लाने के लिए पाँच स्तरों पर कार्य करने की निहायत जरूरत है। उन्होंने कहा कि, वे स्वयं इन पाँचों स्तरों के कार्यों के प्रति मार्गदर्शन करेंगे। मगर उससे पहले यह पांच स्तर यानी रामराज्य के कार्यों की पांच पायदानें हैं जिन पर चढकर आगे बढने के लिए सभी के सहकारिता की एवं सहभागिता की आवश्यकता है, ऐसा  सद्‍गुरु श्री अनिरुद्धजी ने सूचित किया। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि, रामराज्य की शुरूआत ग्रामराज्य से होती है।

यह पाँच स्तर हैं –

१) व्यक्तिगत या निजी स्तर

२) आप्त स्तर

३) सामाजिक स्तर

४) धार्मिक स्तर

५) भारतवर्ष और विश्व स्तर

 

रामराज्य के अंतर्गत आनेवाले प्रकल्प –

रामराज्य की स्थापना के लिए सद्‍गुरु श्री अनिरुद्धजी ने कुछ प्रकल्प शुरू किए हैं। इनमें पाँचों स्तरों का अंतर्भाव है जिससे शहर से लेकर ग्रामीण भाग में रहनेवाले प्रत्येक का सर्वांगीण विकास होगा, इस बात की ओर सद्‍गुरु श्री अनिरुद्धजी ने ध्यान दिया है।

१) अनिरुद्धाज्‌ इन्स्टिट्यूट ऑफ लैंग्वेज ऐण्ड लिंग्विस्टिक।

२) अनिरुद्धाज्‌ इन्स्टिट्यूट ऑफ ग्राम विकास।

३) द एक्सपोनेंट ग्रुप ऑफ जर्नल्स सिरीज

    अ) द एक्सपोनेंट ग्रुप ऑफ जर्नल्स फॉर प्रोफेशनल मेडिसिन

    ब) द एक्सपोनेंट ग्रुप ऑफ जर्नल्स फॉर मेडिकल इन्फोर्मेशन

    क) द एक्सपोनेंट ग्रुप ऑफ जर्नल्स फॉर चार्टर्ड अकाउंटन्ट

    ड) द एक्सपोनेंट ग्रुप ऑफ जर्नल्स फॉर एमबीए

    इ) द एक्सपोनेंट ग्रुप ऑफ जर्नल्स फॉर शेअर्स ऐण्ड स्टॉक मार्केट

    ई) द एक्सपोनेंट ग्रुप ऑफ जर्नल्स फॉर जनरल इंजिनियरिंग

    प) द एक्सपोनेंट ग्रुप ऑफ जर्नल्स फॉर इन्फॉर्मेशन टेक्नॉलॉजी

    फ) द एक्सपोनेंट ग्रुप ऑफ जर्नल्स फॉर इलेक्ट्रॉनिक्स

४) अनिरुद्धाज्‌ इन्स्टिट्यूट ऑफ अल्टर्नेटीव एनर्जी रिसोर्सेस

५) अनिरुद्धाज्‌ इन्स्टिट्यूट ऑफ पोल्यूशन कन्ट्रोल ऐण्ड एन्वायरनमेंटल प्रोटेक्शन

६) अनिरुद्धाज्‌ इन्स्टिट्यूट ऑफ स्पोर्टस ऐण्ड बोन्साय स्पोर्ट्स

७) व्यक्तिगत एवं सामाजिक स्तर पर सभी का सर्वांगीण विकास करते हुए सद्‍गुरु श्री अनिरुद्धजी ने धार्मिक अथवा आध्यात्मिक स्तर पर भी पुरुष एवं महिलाओं के विकास की ओर विशेष ध्यान दिया। इसलिए सद्‍गुरु श्री अनिरुद्धजी ने पुरूषों के लिए ’श्रीमहादुर्गेश्वरप्रपत्ति’ तथा महिलाओं के लिए ‘श्रीमंगलचंडिकाप्रपत्ति’ सुझाई है। प्रपत्ति प्रत्येक महिला एवं पुरूष को सांसारिक एवं आध्यात्मिक स्तर पर समर्थ बनाएगी।

८) तो इसी कार्य को भारतवर्ष एवं विश्व स्तर पर ले जाने के लिए सद्‍गुरु श्री अनिरुद्धजी ने ’श्रीचंडिका एक्झाल्टेशन आर्मी फॉर रिससीटेशन ऐण्ड रिहैबिलिटेशन’ की अर्थात ‘श्रीचंडिका अभ्युद्य एवं उन्नति सेना’ की स्थापना की।

आर्मी का नाम सुनते ही हमारे आँखों के सामने सैनिकी लिबाज, हाथों में रायफल थामे हुए सैनिक दिखाई देते हैं। परंतु सद्‍गुरु श्री अनिरुद्धजी द्वारा बनाई गई यह ’एक्झाल्टेशन आर्मी’ यानी ’रिससिटेशन ऐण्ड रिहॅबिलिटेशन ऑफ ऑल द स्ट्रेन्थ्स ऑफ द ग्रेट इंडियन कल्चर’ के लिए है। एक्झाल्टेशन यानी हर दिशा से, हर स्तर पर, हर तरफ से ’स्वयं का, ’स्व’ का, स्वधर्म का तथा स्वदेश का उन्नतिकरण करना या उत्कर्ष करना। यह आर्मी हमारे मातृधर्म तथा मातृभूमि की रक्षा करने के लिए तथा सर्वश्रेष्ठ भारतीय संस्कृति के सर्वोत्तम सामर्थ्यों के प्रभावों के पुनरूजीवन के लिए है। इसके अलावा यदि तीसरा महायुद्ध हुआ तो भारतीय सेना की आवश्यक सहायता करना, इस आर्मी का उद्देश्य है।

इस प्रवचन द्वारा सद्‍गुरु श्री अनिरुद्धजी ने रामराज्य के दृष्टिकोन से अपे़क्षित जीवनशैली तथा समाज व्यवस्था कैसी होनी चाहिए, यह बताया था।   

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