श्रीरामरसायन
इस ग्रंथ में रामजन्म से लेकर अयोध्या में रामराज्य स्थापित होने तक की रामकथा का जीवनसार है। इसमें चित्र भी कथा के अनुरूप हैं। रावण दुष्प्रारब्ध का तथा तामसी अंहकार का प्रतिक है, जिसके कारण मनुष्य के जीवन में भय उत्पन्न होता है। दुष्प्रारब्धरूपी रावण हमारे जीवन से शांति-तृप्तीरूपी जानकी को पुरुषार्थरूपी राम से दूर ले जाता है। अंहकाररूपी प्राण, एवं काम, क्रोध, मोह जैसे षडरिपु मन के मूलद्रव्यरूपी रावण का वध रामजी के हाथों ही होता है। मानव को सतानेवाले दुष्प्रवृत्तियां एवं दुष्प्रारब्धों का नाश होता ही है। पर कब? जब हम रामजी के वानर सैनिक बनते हैं तब। बापूजी ने ’रामरसायन’ नामक ग्रंथ में बडी सुंदरता से इसका वर्णन किया है।
यह ग्रंथ पढ़ते समय ग्रंथ का प्रत्येक किरदार हमारे सामने सजीव हो उठता है। जैसे रामनाम से पाषाण भी सागर में आसानी से तैरने लगते हैं, वैसे ही रामनाम हमारे जीवन को तारेगा यह विश्वास हर श्रद्धावान के मन में निर्माण होता है। इस ग्रंथ में रामायण के विभिन्न किरदार हमारे जीवन के विभिन्न पहलुओं को दर्शाते हैं। यह ग्रंथ हमारे अंदर रावणसदृश दुर्गुणों का अहसास दिलाकर उनका नाश करने के लिए तथा हमारे जीवन में उचित बदलाव लाने के लिए एक सहज और सरल आध्यात्मिक मार्ग दिखाता है।
सद्गुरु श्रीअनिरुद्ध विरचित ’रामरसायन’ ग्रंथ केवल प्रभू रामचंद्र का जीवनचरित्र ही नहीं है बल्कि, अपना जीवन चेतना से, सजीवता से और सकारात्मकता से जीने के लिए एक आचारसंहिता ही है। सर्वोच्च मानी जानेवाली ’श्रीरामजी की नि:स्वार्थ सेवा’ ही प्रत्येक मानव के जीवन का परमोच्च शिखर है और यही ’रामरसायन’ की आत्मा है।
परमपूज्य सद्गुरू श्रीअनिरुद्ध बापूजी ने ’रामायण’ जैसे महान पवित्र ग्रंथ का सार श्रद्धावानों के लिए सहज, सुंदर शुद्ध मराठी भाषा में एवं सचित्र स्वरूप में ’रामरसायन’ ग्रंथरूप में दिया है। श्रद्धावान इस ग्रंथ का अत्यंत प्रेमपूर्वक पठण करते हैं। (यह ’रामरसायन’ ग्रंथ हिन्दी भाषा में भी उपलब्ध है)। श्री अनिरुद्ध गुरुक्षेत्रम् में रात्रिपठण हेतु आनेवाले सभी भक्त ’रामरसायन’ ग्रंथ का प्रेमपूर्वक पठण करते हैं। जिन श्री हनुमानजी के पास ’रामरसायन’ है उनके गुणवर्णन करनेवाले हनुमानचालिसा एवं सुंदरकांड का पठण भी श्रद्धावान भक्त बापूजी के मार्गदर्शनानुसार करते आए हैं।