साईनिवास

सद्‍गुरु श्री साईबाबा के अनेक भक्तों ने कैसे उनकी कृपा प्राप्त की, इसका वर्णन ‘श्रीसाईसच्चरित’ नामक ग्रंथ में पाया जाता है। प्रत्येक साईभक्त को अत्यंत भानेवाला यह ग्रंथ जिस वास्तु में लिखा गया वह वास्तु है ’साईनिवास।’ यह श्री गोविंद रघुनाथ दाभोलकर अर्थात ’हेमाडपंत’जी का निवास सथान है, जिन्होंने श्री साईबाबा की आज्ञा पाकर ’श्रीसाईसच्चरित’ लिखा।

सन १९१० में हेमाडपंतजी पहली बार श्री क्षेत्र शिरडी में साईनाथ के दर्शन के लिए गए। पहली ही मुलाकात में हेमाडपंतजी श्रीसाईनाथ के चरणों में धूलभेंट ली और हमेशा के लिए बाबा के हो गए। साईबाबा ने ही उनका नाम ‘हेमाडपंत’ रखा। भक्तों को साईबाबा के आए हुए अनुभव तथा उनकी लीलाओं को कथारूप में संग्रहित करने के लिए हेमाडपंतजी ‘श्रीसाईसच्चरित’ ग्रंथ लिखने लगे।

मी तो केवळ पायांचा दास। नका करू मजला उदास। जोवरी या देही श्वास। निजकार्यास साधूनि घ्या॥
(मैं तो केवल चरणों का दास, न करना मुझे उदास, जब तक इस देह में सांस, अपना कार्य करा लीजिए।)

यह चौपाई अपने जीवन में उतारते हुए हेमाडपंतजी ने अपने घर ’साईनिवास’ में ‘श्रीसाईसच्चरित’ ग्रंथ लिखा। बांद्रा, मुम्बई स्थित इस वास्तु को बने हुए आज एक शताब्दी से अधिक समय बीत चुका है। इस वास्तु का उल्लेख ‘साईसच्चरित’ ग्रंथ में भी आता है।

हेमाडपंतजी ने साईबाबा की आज्ञा से सन १९११ में इस वास्तु के निर्माण का कार्य शुरू किया था। वास्तू की रचना भी साईबाबा के कहेनुसार ही की गई। ‘यह घर मेरा नहीं, साईनाथ का है’, इस भावना को मन में धारण किए हुए यह वास्तु निर्माण की गई। लगभग सन १९१३ में इस वास्तु का निर्माण कार्य पूरा हुआ और इसे ‘साईनिवास’ नाम दिया गया। हेमाडपंत के वंशजों ने इस पवित्र वास्तु को अच्छी तरह से जतन किया है। आज इस वास्तू में हेमाडपंतजी के पोते श्री. गोविंद गजानन दाभोलकर (अप्पा दाभोलकर) अपने परिवार समेत रहते हैं। साईनाथ के प्रेम और कृपाआर्शिवाद से परिपूर्ण इस वास्तु के दर्शन का लाभ हर कोई उठा सकता है।

हेमाडपंतजी को श्रीसाईनाथ का जो दृष्टांत हुआ उसके मुताबिक सन १९१७ में साईनिवास में होली पूर्णिमा के दिन श्रीसाईनाथ का तस्वीररूप में आगमन हुआ। यह कथा साईसच्चरित के ४०वें अध्याय में आती है। श्रीसाईनाथ के आगमन का दिन आज़ भी साईनिवास में बड़े भक्तिभाव से मनाया जाता है।

इस साईनिवास के संदर्भ में एक और कथा ’साईनिवास’ नामक सीडी में ’सद्यपिपा’ अर्थात अप्पासाहब दाभोलकरजी द्वारा बताई गई है। सन १९९३ से डॉक्टर अनिरुद्ध जोशी (सद्गुरु श्रीअनिरुद्ध) का साईनिवास में आना-जाना था। डॉ. जोशी अप्पासाहब दाभोलकर और उनकी धर्मपत्नि मीनाभाभी से अक्सर साईनाथ की बातें किया करते थे। साईनाथ ने देहत्याग के समय हेमाडपंतजी को तीन चीजें दी थीं। हेमाडपंतजी ने वे चीजें अपने बेटे को सुपुर्द कर दीं। उन्होंने अपने देहांत से पहले वे चीजें अप्पासाहब दाभोलकरजी को दीं। दाभोलकर परिवार ने पीढियों तक यह चीजें संभालकर रखी थीं। हेमाडपंतजी और उनके बेटे डॉ. गजानन दाभोलकरजी के बाद केवल अप्पासाहब दाभोलकर और उनकी धर्मपत्नी मीनाभाभी दाभोलकर को ही इन चीजों की जानकारी थी। श्रीसाईनाथ की इन चीजों के बारे में अन्य किसी भी व्यक्ति को जानकारी न होते हुए डॉ. श्री अनिरुद्धजी ने सन १९९६ में श्रीसाईनाथ द्वारा दी गई यह तीन चीजें उनसे मांग लीं और अपने सद्गुरुत्त्व की निशानी दी। तब दाभोलकर परिवार सद्गुरु के दर्शनों से गदगद हो गया।

पहले तो साई की यह तस्वीर केवल होली पूर्णिमा के दिन ही श्रद्धावानों को दर्शन के लिए रखी जाती थी। बाद में मीनाभाभी की इच्छानुसार यह तस्वीर साईनिवास में रोज दर्शन के लिए रखी जाने लगी, तथा सद्‍गुरु श्री अनिरूद्धजी के मार्गदर्शन अनुसार इस तस्वीर की हूबहू बड़ी प्रतिकृति बनवाई गई। साईनिवास में श्रद्धावान इस मूर्ति के भी दर्शन कर सकते हैं। इस वास्तु में श्रीसाईनाथ की इस मूर्ति को देखते हुए ‘ॐ कृपासिंधू श्री साईनाथाय नम:’ का जाप किया जा सकता है। इससे मन को बडी प्रसन्नता मिलती है।

हेमाडपंत ने जिस मेज पर यह ग्रंथ लिखा वह मेज साईनिवास में आज भी है। मीनाभाभी की याद में साईनिवास के पिछले हिस्से में एक ’तुलसी वृदांवन’ बनाया गया है। श्रद्धावान यहीं पर सद्‍गुरु श्री अनिरूद्धजी की पूर्णाकृति प्रतिमा तथा पादुकाओं के दर्शनों का लाभ उठा सकते हैं और तुलसी वृंदावन की परिक्रमा भी कर सकते हैं, तथा यहीं पर सुदीप प्रज्वलित किए जा सकते हैं।

साईनिवास में ’होली पूर्णिमा’ उत्सव मनाया जाता है। सन २०१७ में श्रीसाईनाथ की तस्वीर को सौ साल पूरे होने के अवसर पर साईनिवास में ‘शताब्दी महोत्सव’ मनाया गया। इस अवसर पर कई आध्यात्मिक कार्यक्रम संपन्न हुए। जिस वास्तु को सद्गुरु के दो रूपों का अनुभव हुआ हो उस वास्तू में ’सद्‍गुरु नवरात्रि’ मनाई जाती है, ऐसे माना जाता है। यह नवरात्रि अश्विन महीने की प्रतिपदा से दशहरे तक मनाई जाती है। सद्‍गुरु श्री अनिरूद्ध बापूजी के मार्गदर्शनानुसार सन १९९७ से साईनिवास में सद्‍गुरु नवरात्रि मनाई जाती है। साईनिवास में रोज शाम को सात बजे आरती होती है और उसके बाद हरिपाठ/शिवपाठ/अनिरूद्धपाठ/गणपति अथर्वशीर्ष में से किसी एक का पठन किया जाता है।

साईनिवास का पता तथा दर्शन का समय –
यह साईनिवास मुंबई में ब्रांद्रा स्टेशन से पैदल १० मिनीट की दूरी पर है।
पता- साईनिवास, सेंट मार्टिन रोड, बांद्रा (पश्चिम), मुंबई -४०००५०.

दर्शन का समय-
सुबह ८.०० बजे से दोपहर १.०० बजे तक
शाम ४.०० बजे से ८.०० बजे तक
गुरुवार – सुबह ८.०० बजे से शाम ४.३० बजे तक

Leave a Reply